हसरतें
हसरतें
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हसरतें तो बहुत पल कम पड़
गयें बताते है।
हसरत है।उसको हरने की जिसको
मजबूरी बताते है।
हसरत है। उनके ग़म हरने की जिनको
लोग सतातें है।
हसरत है।उसे जगानें की जिसे
ज़मीर बताते है।
हसरत है।वो चेहरे चमकाने की जिन्हे लोग प्रतिभा बताते है।हसरत है।उस खुशहाली की जिसे सब सरसब्ज़ बताते है।
हसरत है। उसे मॉ कहने की जिसे शहीद की मॉ बताते है।
हसरत है। उन्हे अपनाने की जो अनाथ
बेसहारा कहाते है।
हसरत तो बहुत है। मेरी पर सबसे बड़ी
एक हसरत है।
उस मानवता को पाने की जिसे लोग
लोग विलुप्त बताते है।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड