हसदेव बचाना है
वर्णित छंद मनहरण घनाक्षरी(16-15)
मच गया हाहाकार, फिर से लो एक बार ।
कट रहा हसदेव, जंगल बचाना है ॥1
चिड़ियों के चीव चाँव , छिन गये नीड़ -छाँव ।
दर्द वाले एक एक ,घाँव सहलाना है।।2
कलियाँ तो चुनते हैं , पात को भी चूनते हैं।
पर हमें जड़-शाख, पेड़ को बचाना है ।3
बिन पेड़ कब दवा , जहरीली होगी हवा ।
काँटो मत पेड़ अब, जीवन बचाना है ॥ 4
जंगल जो कट गया, समझो वो मिट गया ।
झूठ बोलते वे पौधे, फिर से लगाना है ॥5
जंगल है रोजी रोटी, करो ना नियत खोटी ।
जाएँ कहाँ आदिवासी, सबको बताना है ॥6
खीचता पहाड़ पानी , मत करो मन मानी ।
आओ मिल जुल सब, पहाड़ बचाना है ॥7
जंगल जीवन घेरा,वन्य जीवों का है डेरा।।
चलो मिल जुल उन, घर को बचाना है ॥8
ऊर्जा के स्रोत कई, जल हवा सौर नई ।
नये नये विकल्पों पे ,जोर आजमाना है ॥9
आज जो खामोश होगा,दोष उसका ही होगा ॥
आओ हमें हसदेव , मिल के बचाना है।10
जुगेश कुमार बंजारे
नवागाँवकला छिरहा बेमेतरा छ ग
9981882618