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4 Mar 2022 · 1 min read

हवा का रू

आज हवा का रूख दिवार सा है
लहरों का सा भाव है, मझधार सा है
ये तो अभी किनारा है,जाना तो दूर है
दिल मेरा हर दिवार गिराने को तैयार सा है
नसीब न दे साथ फिर भी चलना है
मंज़ील को पा लेने का सरोकार सा है
रेत पे निशां बताएंगे रासता
चला होगा उस पर, कोई बेज़ार सा है
कशमकश ही रोक रही है रासता
कशमकश को इतना अघिकार सा कयों है

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