हवा का ख़ौफ़
हवा का ख़ौफ़ है पर ख़ुद को आज़माने दे
चिराग़ बुझ गए हैं जो मुझे जलाने दे
हयात यूंँ भी ज़मीनों से तंग है साक़ी
तेरी निगाह के प्याले में डूब जाने दे
ख़ुदा नवाज़ मुझे शक्ल परिंदे की फिर
किसी अनाथ की डाली पे चहचहाने दे
मुझे भी चाहिए मंज़िल का दर मगर पहले
मेरा ज़मीर गिरा है मुझे उठाने दे