हवाओं की सारी नमी बँट चुकी है
बड़ी थी कभी पर अभी बँट चुकी है
कई टुकड़े होकर जमीं बँट चुकी है
लगा ले तू टोपी तिलक मैं लगा लूँ
ये पहचान भी मजहबी बँट चुकी है
इधर तेरी दुनिया उधर मेरी दुनिया
कि अब घर की दीवार भी बँट चुकी है
चलो खोज लें अब नया ठौर कोई
शहर की तो अब हर गली बँट चुकी है
ये तेरा मुबाइल ये मेरा मुबाइल
मुबाइल में गुम जिंदगी बँट चुकी है
शहर का बड़ा शुष्क मौसम है संजय
हवाओं की सारी नमी बँट चुकी है