हर शख्स मय में शान ए महफिल हो गए
हर शख्स मय में शान ए महफिल हो गए
ना लिये थे वो दरबान ए महफिल हो गए
गुफ्तगू वहां कि हम मय -ए- बहक हो गए
नजदीक आकर देखें हम तो महक हो गए
टूटे दिल मयखाने में मय के सहारे हो गए
साबूत दिल महलों में लहु के प्यासे हो गए
छलके पैमाने तो गम दिल में दफ़न हो गए
ए खुदा तेरी इस शय से हम दिवाने हो गए
तासीर ए इश्क देखिए अपने थे बेगाने हो गए
तासीरे मय है एक बार लगाया उसीके हो गए
हिसाब ए जिन्दगी हम तो यूं बदनाम हो गए
लक्ष्मण क्या परवाह हम शुग्ल़-ए-मय हो गए
लक्ष्म्ण सिंह
जयपुर
शुग्ल़-ए-मय = शराब पीने में व्यस्त