हर रोज बदलते मौसम में
हर रोज बदलते मौसम में
बेचैन हवाएँ चलतीं हैं ।
तय करना कितना मुश्किल है !
किस ओर हवाएँ चलतीं हैं ।
राही कब कौन जतन कर ले ।
धूप तपे ,अभी बारिश भीजे ।
अगले पल का कोई ठौर नहीं ।
कल के बारे में क्या कोई बूझे ।
हर रोज बदलते मौसम में
बेचैन हवाएँ चलतीं हैं ।
तय करना कितना मुश्किल है !
किस ओर हवाएँ चलतीं हैं ।
राही कब कौन जतन कर ले ।
धूप तपे ,अभी बारिश भीजे ।
अगले पल का कोई ठौर नहीं ।
कल के बारे में क्या कोई बूझे ।