*हर रंग में ढलती हूँ*
कवि नहीं हूँ फिर भी कविता लिखती हूँ ।
लेखक नहीं हूँ फिर भी लेख लिखती हूँ ।।
विद्यार्थी नही हूँ फिर भी रोज सीखती हूँ ।
सबके जैसी हूँ फिर भी अलग दिखती हूँ ।।
नासूर से घाव भावनाओं से सिलती हूँ ।
अनजाने से भाव कलम से लिखती हूँ ।।
हर दर्द सहकर भी फूल सी खिलती हूँ ।
मैं हर सकारात्मक शब्द से मिलती हूँ ।।
बोलना पसन्द है चिड़िया सी चहकती हूँ ।
हँसती हूँ दिल से ख़ुशबू सी महकती हूँ ।।
जानते तो हो मुझे जो हर रंग में ढलती हूँ ।
नीलम हूँ तभी तो नीलम सी चमकती हूँ ।।