हर पल तुमको खोने का डर…
हर पल तुमको खोने का डर….
हर पल तुमको खोने का डर
फिर से तनहा होने का डर
सोई पीड़ा के जगने का
भाग्य – सितारे सोने का डर
दिल में टीस उठ रही ऐसे
रह – रह जैसे चुभता नश्तर
मुँह छुपा कर बैठे तुमसे
रख कर दिल पर भारी पत्थर
एक बार तो देख इधर लो
रिसते आँसू झर-झर झर-झर
सुकूं नहीं इक पल भी मन को
हाल हो रहा बद से बदतर
सुख पकड़ से छूटते जाते
गम ने दिल में बना लिया घर
हृद पाषाण हुआ जाता है
हो रही देह घिस-घिस जर्जर
सुख-साधन डसने को आतुर
मार कुंडली बैठा विषधर
देख शुष्क मरुथल-सा जीवन
पलकों पर आ ठिठका जलधर
निशिदिन प्राण कलपते रहते
तुम बिन जीवन लगता दूभर
जान हमारी अटकी तुममें
कितने जन्मों भटकी दर-दर
प्रेम कहाँ बँधता ‘सीमा ‘ में
प्रेम कभी ना होता नश्वर
– डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“मृगतृषा” से