हर पल डरता हैं लड़का
हर पल डरता है लड़का
चट्टान सा कठोर ह्रदय रख
फूलों सा कोमल मुस्काता
भावुक हो कितना भी
आंसू पलकों तले दबा लेता
परिस्थितियाँ गभींर हो फिर भी
खुद से लडता रहता है लड़का
हर पल डरता है लड़का
सूर्य सा प्रकाशवान होना चाहता
चाँदनी की शीतलता में खोना चाहता
जब कुछ बुरा देखता
दृढ़ता से लडता
घर की स्थिति को सोचता है लड़का
तभी तो हर पल डरता है लड़का
कभी सुंगध भरी पुरवाई है
तो कभी चट्टानों से निकला ज़्वाला
सागर की गहराई जैसा तन
दीप सा उजाला मन
संस्कारों से लडता है लड़का
इसलिए हर पल डरता है लड़का
घर की भलाई खातिर दूर हो जाता
कुछ अच्छा करने को मजबूर हो जाता
सपनें सजाता उसे तोड़ आता
परिस्थितियों में अपने ही खो जाता
अपनी इज्जत की खातिर
हर पल डरता है लड़का.
‘शेखर सागर’