हर तरफ है
तबाही की कहानी हर तरफ है।
क़यामत की निशानी हर तरफ है।।
हमारी किश्तियाँ भी हैं सलामत,
“अगर पानी ही पानी हर तरफ है।”
न साक़ी है न रिन्दाना नज़ारे,
फ़कत बोतल पुरानी हर तरफ है।
समझ पाया न कोई फ़न को उसके,
ख़ुदा की तर्जुमानी हर तरफ है।
फँसी सैलाब में है जिन्दगानी,
हवा में राजधानी हर तरफ है।
खड़े हैं झूट की चट्टान पे सब,
सदाक़त मुँहज़बानी हर तरफ है।
कभी मुझको भी तू काबा दिखा दे,
कि तेरी हुक्मरानी हर तरफ है।
हक़ीक़त में सिफ़र भी है न हासिल,
विरासत ख़ानदानी हर तरफ है।
किधर जायें ग़ज़ल हम लेके अपनी,
अदब में लन्तरानी हर तरफ है।
किसी के गेसुओ की छाँव में हूँ,
‘असीम’ अब रुत सुहानी हर तरफ है।
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’