हर तरफ है भ्रष्टाचार
लूट खसोट का है व्यवहार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
समाज का हो गया बंटाधार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
लंबी लंबी लगी कतार
चढ़ावा यहां अब शिष्टाचार
काम निकाले चाटुकार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
मेधा हो गई है बेकार
मजा ले रहे पैरोकार
हो रहे सपने उनके साकार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
डूबी लुटिया जो हैं ईमानदार
कुंठा के हो रहे शिकार
नौकरी तरक्की सबसे बेजार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
बदल रहा आचार-विचार
रिश्वत लगाती नैया पार
काले धन का है कारोबार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
निष्ठा हो गई तार तार
सब कुछ लेते हैं डकार
व्यवस्था हो गई है लाचार
हर तरफ है भ्रष्टाचार
न्याय की है सबको दरकार
आंख मूंदे बैठी सरकार
पट्टी खुले तो मिटे अंधकार
हर तरफ है भ्रष्टाचार