हर घड़ी यूँ सांस कम हो रही हैं
हर घड़ी यूँ सांस कम हो रही हैं
जिंदगी की श्वास कम हो रही है
हर घड़ी यूँ………..
लोग भटकते हैं दौलत के लिए
फिर भी कुछ हासिल नहीं होता
लगता है तलाश कम हो रही है
हर घड़ी यूँ……….
लोग थक चुके हैं चलते-चलते
फिर भी कोई क्यों नहीं रूकता
लगे हैं पर आश कम हो रही है
हर घड़ी यूँ……….
लोग जानते हैं नशा डुबो रहा
‘विनोद’ पी रही है सारी दूनिया
क्यों नहीं प्यास कम हो रही है
हर घड़ी यूँ………..
जिंदगी की………..