हर गली हर मोड़ पे मेरे कदम अटके बहुत
हर गली हर मोड़ पे मेरे कदम अटके बहुत
ज़िंदगी तुझे पाने को दुनियाँ में भटके बहुत
दुनियाँ में दर्द का सबब जाना जब ये जाना
फूल तो अच्छे लगे काँटे मगर खटके बहुत
छूलें आसमाँ को हम खेलें चाँद तारों से
उड़ने की कोशिशों में झूलों पे लटके बहुत
ऐसा नहीं कि ख़ूबसूरती मिट चली जहाँ से
नूरानी चेहरों से शीशे भी चटके बहुत
दूरियों से बढ़ती है मुहब्बत कहते हैं वो
मज़बूरियों में मेरे आस-पास फटके बहुत
सूखी रेत की मानिंद ज़िंदगी में प्यास है
दरिया तो न बना सका बना लिए मटके बहुत
नाक़ाम रहे वो तौर- तरीके दौर-ए-आज में
क़िताब में लिखा सबक’सरु’चली थी रटके बहुत