हर कोई ताकने लगा
लगता है जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया,
मेरी बेटी को अब हर कोई ताकने लगा है।
सुनसान पड़ी गली हमारी में चहलकदमी बढ़ गयी,
जिसे देखो गली के चक्कर काटने लगा है।
खा जाने वाली नजरें दौड़ने लगी हैं घर की तरफ,
आता जाता हर कोई घर में झाँकने लगा है।
हैरान हूँ कि बूढ़ों में भी जवानी जोर मारने लगी है,
खंडहर होती इमारत कोई सवांरने लगा है।
किस किस से महफूज रखूं अपनी नन्हीं कली को,
गैर क्या अपना भी बन भंवरा मंडराने लगा है।
माथे पर बल पड़ने लगे समझ नजाकत ऐ वक़्त,
एक अनजाना सा डर अब सताने लगा है।
काँप जाती है रूह मेरी पढ़कर खबरें अख़बार में,
मन मेरा क्रोधाग्नि में जलने लगा है।
अब समझी मैं माँ का दर्द जब माँ बनी बेटी की,
नजरिया “सुलक्षणा” का बदलने लगा है।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत