हर कोई कलाकार बन गया ___ कविता
हर कोई कलाकार बन गया।
कैसा यह बाजार बन गया।
नाम तो दे बैठे उसे प्यार का,
वहीं अब व्यापार बन गया।।
कुदरत की खूबसूरती से खिलवाड़ किया,
अब तो बनावटी श्रृंगार बन गया।।
घर का मुखिया बुजुर्ग क्या हुवा,
नव पीढ़ी के लिए वह भार बन गया।।
किसको समझाए किसे न समझाएं,
जिसे देखो वही तो समझदार बन गया।।
चार किताबे क्या पड़ ली ज्ञान की,
उपदेशों का वही भंडार बन गया।।
“मैं” _पत्नी _”बच्चे” ही दुनियां मेरी,
देखा हमने यही जीवन सार बन गया।।
अहंकार पलता रहा अंदर से जलता रहा,
आकर सामने वही उदार बन गया।।
क्या लिखूं _ क्या छोड़ पाऊंगा मैं,
जो लिखा वही अपार बन गया।।
राजेश व्यास अनुनय