हर कोई इतना ही अब दिलदार होना चाहिए
बिक रहा है झूठ तो इस क़दर जहान में,
सच का भी तो कोई बाज़ार होना चाहिए/
नेक राहों पर जो चलना चाहता हर क़दम,
उसको तो हर हाल में खुद्दार होना चाहिए/
डूब जाए न कहीं इस झूठ के सागर में वो,
साथ हौसले का तो पतवार होना चाहिए/
भूख से बेहाल चिपके पेट ही तो पीठ से,
अब कोई इतना नहीं लाचार होना चाहिए/
काट सकता सैकड़ों गर्दन तो तलवार ही,
भूख को मारे ऐसा भी तलवार होना चाहिए/
खट के जो भी ढो रहे हैं ज़िंदगी के बोझ को,
उनका सपना भी अब साकार होना चाहिए/
भीड़ बढ़ती जा रही है शोषकों की जमात में,
सरेराह उनका ही तो धिक्कार होना चाहिए/
रोकने को झोपड़ियों को महल का ग्रास ही,
अब तो आक्रोश का विस्तार होना चाहिए/
नज़रों में हो बराबर उसके ही तो हर कोई,
ऐसा भी तो अब कोई दस्तार होना चाहिए/
दूसरों के दुःख को अपना ही समझ सके,
हर कोई इतना ही अब दिलदार होना चाहिए/