हर्षित आभा रंगों में समेट कर, फ़ाल्गुन लो फिर आया है,
हर्षित आभा रंगों में समेट कर, फ़ाल्गुन लो फिर आया है,
धरोहित जड़ों की तरफ मोड़ कर, उत्सव ने उल्लास मनाया है।
जीर्ण-शीर्ण पुरातन का त्याग कर, नित्य-नूतन वायु में छाया है,
ढोलक-मृदंग की तान साध कर, अपनों को फिर अपनाया है।
आसमां में गुलाल बिखेर कर, सकारात्मकता की ऊर्जा को पाया है,
जीवन की नीरसता को तोड़ कर, सरसता के वैविध्य को दर्शाया है।
विरह से भरे मन को मोह कर, प्रेम ने गीत रास-रंग का गाया है,
स्वर्णिम सूरज ने साक्षी बनकर, हर गीले-शिकवे को मिटाया है।
ऊंच-नीच की खाई पाट कर, एक हीं रंग में सबको भिंगोया है,
सौहार्द से अपनी झोली भरकर, स्नेह का प्रतीक कहलाया है।
होलिका की दुशाला भस्म कर, भक्त की भक्ति को बचाया है,
हरि ने स्वयं अवतरित होकर, दम्भित-दानव को हराया है।
इंद्रधनुषी रंगों ने उतर कर, धरती के आँचल को सजाया है,
वर्षभर की प्रतीक्षा को पार कर, दिन होली का लो मुस्काया है।