हरि कथन
मद भागवत श्री हरि कथन वेदस्य वाणी भूषणम।
मद मोह नाशं अर्जुनम सत् मित्रमम आभूषणं।
कुरुक्षेत्र मध्ये रथआरूढे श्रीकृष्ण वाचे पार्थमम।
शोका कुले है पार्थमम रणक्षेत्र मध्ये केशवम।(1)
कर समर्पित मैं अहम निज ज्ञानी बना हे केशवा।
निश्चिंत निसंदेह निर्भय कर दिया हे!केशवा।
अर्जुन समर में हो खड़ा उद्यत हुआ रण बाँकुरा।
कर योग धारण निज हृदय प्रस्तुत हुआ मम बाँकुरा।
श्रुति सार केशव ने दिया इस विश्व को कल्याण मम।
स्थित प्रज्ञ किया विश्व निज ज्ञान दे कल्याण मम।
मम साधना मद भागवत गीता गुरु सुख दायिनी।
श्री हरि चरण की लाज रख गीता परम पद पावनी।