हरियाणवी कविता
एक बात कहूँ सूँ यार मेरे सुणो पल्ले गाँठ लावण की
कदे भी ग़लती ना करियो बड़े घर मैं बेटी ब्याहवण की
उसकी ख़ुशी की ख़ातर तम कितने समझौते कर ल्यो सो
उस ताईं दहेज़ देण न रै किल्ले भी गिरवी धर ल्यो सो
जीवन भर की पूँजी आपणी ब्याह मैं तमनै ला दी रै
राज करैगी लाडली न्यू सोच जी न राज्ज़ी कर ल्यो सो
इतणी तावल कर दयो सो तम ब्याज़ पै कर्ज़ा ठावण की
कदे भी ग़लती ना करियो बड़े घर मैं बेटी ब्याहवण की
रोज़ सुणैगी घरक्यां पै ताने मार भी वा कदे खावैगी
पिस्यां का हो घमंड जड़ै रै उड़ै इज्ज़त वा नहीं पावैगी
आँसू कोए नहीं पूछैगा अर हाँस हाँस क सब कह देंगें
ठौर-ठैकाणा कोए नहीं तेरा, रो ले, इब कीत जावैगी
बाट देखती रह ज्यागी वा घर तै किसे के आवण की
कदे भी ग़लती ना करियो बड़े घर मैं बेटी ब्याहवण की..
माँ-बाब्बू नै दुःख ना होज्या न्यू सोच कै चुप वा रह ज्यागी
बात करैगी राणी की ढाल रै दर्द वा दिल मैं सह ज्यागी
तम्म मेरी चिंता करियो मन्ना मैं भोत घणी राज्ज़ी सूँ माँ
सारे आँसू हलक़ मैं पी कैं चालती हाणै वा कह ज्यागी
आल़े मैं दीवा देगी जला जब घड़ी आवैगी जावण की
कदे भी ग़लती ना करियो बड़े घर मैं बेटी ब्याहवण की…
नस काटण की सोचैगी कदे मंडेर पै जाकै झाँकैगी
बालकाँ के मुँह कानी देख कै रूह भी उसकी काँपैगी
जीवन भारी हो ज्यागा रै वा फ़ेर भी मर नहीं पावैगी
कुछ बस नहीं चालैगा जब तो वा रोवैगी कदे हाँसैगी
मर तो लेगी भीतर त कसर रह ज्यागी माट्टी ठावण की
कदे भी ग़लती ना करियो बड़े घर मैं बेटी ब्याहवण की
एक बात कहूँ सूँ यार मेरे सुणो पल्ले गाँठ लावण की
कदे भी ग़लती ना करियो बड़े घर मैं बेटी ब्याहवण की
सुरेखा कादियान ‘सृजना’