हरित – वसुंधरा।
हरित – वसुंधरा।
देख अम्बर मेघ फूलों के अधर लाली
प्रेमरत मधुकर मगन, मकरंद, तरु- डाली,
वल्लरी झूमे, पवन मुकुलित कली चूमे
कर रही अरुणिम प्रभा रुत मत्त, मतवाली ।
जी उठी सरिता, सरोवर नीर छलकाये
पीत-पट नित डाल दादुर गीत नव गाये,
किंकिणी कटि बाँध सजनी झूलती झूले
गंध अनुपम अंग-सुरभित की बिखर जाये ।
है निखर आयी छटा, धरणी बनी रानी
शोभता परिधान मंजुल देह पल धानी,
षोडशों सिंगार, वसुधा-अंग रस संचार
मेघ पुलकित ले खड़ा नत् स्वर्ग का पानी।
अनिल मिश्र प्रहरी।