हरसिंगार
-२८/०४/ २०१९को लिखी शेफाली (हरसिंगार)पर कविता छंदमुक्त ,स्वतंत्र
●●●●●●
तेरे सुर्ख लबों से जब ,हरसिंगार झरे ,
महके खुश्बू से तेरी फिजाँ जवाँ लगे।
गुलज़ाफरी,कहूँ या शेफा़लिका तुमको,
शिवली बन आँखों में अंजन बन लगे ।
पारिजात सी अदायें नीरवता की दीवानी
रातरानी बन प्रीत में सब न्यौछावर करे।
प्राजक्ता सी अलसाई अँखियों में समाई
हरि अर्चन को जैसे हरिचंदन बन आई।
वेदना की मौन पीड़ा में पिरोती मोती सी
श्वेतवर्ण मुरझाये यूँ पीत वसन ओढती ।
दग्ध हिय की चटकती पीर लिए जलती
निशा के नीरव सन्नाटे में अश्रु बन बिखरती।
क्रंदन तेरा सुन न पाया न निष्ठुर व्रण वंदन
अरुणिम भोर में करदे ते तुझे देव अर्पण ।
न पीडित ,न शरमाई न दिग्भ्रांता अकुलाई
उद्भ्रांत अपराजित अभिमानन न कुम्हलाई ।
मनोरमा जैन पाखी ।