हरकत में आयी धरा…
हरकत में आयी धरा, लाजिम उसका क्रोध।
हद से बढ़ते जुल्म जब, कौन न ले प्रतिशोध।।
हुए तब्दील अश्म में, पल में भौतिक भोग।
चित्रलिखित से देखते, हक्के-बक्के लोग।।
धरती को बंधक बना, साध रहे तुम स्वार्थ।
कंपन उसका क्या कहे, समझो नर गूढ़ार्थ।।
थर्रा उठी बसुंधरा, डोल उठा स्थैर्य।
जुल्मों को सहता रहे, आखिर कब तक धैर्य ?
धरती को जूती समझ, चलते सरपट चाल।
बिलट गयी जो ये कभी, कर देगी बेहाल।।
धरती को नित दुह रहे, होकर हम बेफिक्र।
उस पर होते जुल्म का, करें कभी तो जिक्र।।
जग औचक थर्रा गया, आया जब भूकंप।
अफरातफरी सी मची, मचा खूब हड़कंप।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )