#कविता//हयात कमालात
#हयात कमालात
बशर करो ख़ुद ही तदबीरें , तज उम्मीदें औरों से।
कल यही कमालात तुम्हारे , बनें करिश्मा शोरों से।।
ख़्वाह गैर भी इकबाल रखे , बेदार रहे हर ज़द से।
दुवा यही हो पाक रूह से , नादार हँसे तर मद से।।
नौए इंसां गुलज़ार रहे , घर-आँगन बू से महके।
इश्क़े-मदिरा भरे दिलों में , अहल-ए-वतन हर चहके।।
दाग़ नहीं दाद चुरानी है , फलसफ़ा यही साख यही।
रहूँ अज़ीज खिला नूरानी , हाँ मोहब्बत पाक़ यही।।
नसब नाक ऊँची रखो सदा , घर में रहना या गुरबत।
ज़िल्लत से जीना दोजख़ में , ज़न्नत नेक कर्म शिरकत।।
शब्दार्थ-
बशर-इंसान,तदबीरें-उपाय,कमालात-ख़ूबियाँ, ख़्वाह-चाहे,इकबाल-समृद्धि, बेदार-जाग,ज़द-चोट,नादार-ग़रीब,नौए इंसां-मानव जाति,बू-सुगंध, अहल-ए-वतन-देशवासी, फ़लसफ़ा-सिद्धांत, गुरबत-प्रदेश, इबादत-पूजा,ज़िल्लत-अपमान, दोजख़-नरक
#आर.एस.’प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना