हम हैं कक्षा साथी / musafir baitha
हम साथ साथ हैं पढ़ते; हैं साथ-साथ रहते।
है जीना दुश्वार हमारा; एक दूसरे से हट के।।
हर कोई जानता है, जीवन है दो पल का किस्सा।
इसमें भी विद्यार्थी जीवन, है उसका छोटा हिस्सा।।
माता-पिता हमारे, स्कूल भेजते हमें हैं पढ़ने।
उनकी तमन्ना है कि. हम करें साकार उनके सपने।।
फिर मार-पीट-झगड़ा क्या करना कर्म हमारा?
इससे मंजिल दूर भागेगी, मिलेगा न हमें किनारा।
कर्तव्य को निशाना बनाकर हमें चाहिए लिखना-पढ़ना।
पल-पल को महत्व देकर, चाहिए अपना पथ प्रशस्त करना।।
हम राही हैं जीवन के आ गए, एक पथ पर।
मंजिल हमारी पृथक-पृथक है, चलें साथ-साथ हँसकर।।
समझ लो एक दिन हमें,विद्यालय का होगा छोड़ देना।
हम एक-दूसरे से बिछड़ जाएँगे, और यादों में होगा रोना।।
तब आयेंगे याद वो दिन, जब साथ-साथ थे रहते। धमा-चौकड़ी, लड़ाई-झगड़ा औ’ हँसी-मजाक थे करते।।
सिर्फ यादें रह जायेंगी, रह जाओगे मन मसोस मसोस कर।
दिल तड़प उठेगा, कक्षा साथी से बिछुड़-बिछुड़कर।।
अत: दो क्षण के इस छात्र जीवन को, हम खुशियों से सजा लें।
मिल जुलकर रहें हंसी–खुशी से, साथियों के हृदय में, अपना स्थान बना लें।।
~ बालमन की कविता, 1982 की लिखी हुई, तब मैं कक्षा 8 में पढ़ता था