हम शब्दों से छल करते हैं ।
शब्द शब्द हम गढ़ चलते हैं।
शब्द वही पर अर्थ बदलते हैं।
लिखकर शब्दों से शब्दों की भाषा,
अक्सर हम शब्दों से छल करते हैं ।
—
उस दर्द से न होना खुश तू ।
उस दर्द की भी थी ज़ुस्तज़ू ।(तलाश)
सीखा था मुस्कुराना उसने भी ,
ग़मों की न थी उसे भी आरजू ।
—-
उसके दर्द से न होना खुश तू ।
उसे दर्द की न थी ज़ुस्तज़ू ।
सीखा था मुस्कुराना उसने भी ,
ग़मों की न थी उसे भी आरजू ।
….विवेक दुबे”निश्चल”@…