हम विजय श्री ले आवत है।
कंपित कर से तिलक कियो है
दे विजय श्री का आशिर्वाद ।
कंपित होंठ कहें सुत से
मातृभूमि करना आबाद ।।
छलकत नैन ,कर काॅपत हैं
होटन पै सिसकी आवत है ।
कर में राखी बाॅधे बहना
कलाई आये तब भागत है ।।
करता आरता वीर पति का
सजनी के नैना रोवत है ।
कंपित कर हथियार थमावे
कपोलन ऑसू आवत है ।।
नैना बरसे तात के उत भी
तात छिपावत ऑखन को।
थामत थमै ना भ्रात के नैना
देखत वीर के जावन को।।
क्यों काॅपत है हाथ मात के
भारी मन क्यों लाल कियो?
बहिन भाई उदास भये क्यों
क्यों नहीं सनम श्रंगार कियो?
नर नारी और बाल सका
वीर को विदाई देवत है ।
फूल बखेरत सब पथ पर
मुडत मुडत सब देखत है ।।
खुशी खुशी भेजो तुम हमको
हम रणभूमि में जावत हैं।
आशिर्वाद दो खुशी खुशी
हम विजय श्री ले आवत है ।।