हम भी तो चल पड़े हैं अपना सामान लेकर।
गज़ल
221…..2122…..221…..2122
हम भी तो चल पड़े हैं अपना सामान लेकर।
हँसने हँसाने की ये अपनी दुकान लेकर।
गम सबके दूर होंगे जब मुस्कुरायेंगे सब,
हम सब रहेंगे जिंदादिल स्वाभिमान लेकर।
सब बेचने की आदत से ऐसा लग रहा है,
वो बेचने चले हैं हिंदोस्तान लेकर।
बिखरी है जाफ़रानी खुशबू सी इक हवा में,
वो घूमती ह़ै जैसे सँग जाफ़रान लेकर।
दिल के मकान में भी रख लो कोई हसीना,
क्यों घूमते हो यारो खाली मकान लेकर।
ये काम है तुम्हारा पर नाम हो हमारा,
मंदिर बना रहे हैं औरों से दान लेकर।
दुनियाँ ने हीर रांझा को जीने कब दिया था,
बंधन न तोड़़ पाये प्रेमी की जान लेकर।
…….✍️प्रेमी