हम बिहारी है ।
घर से मिलों दूर कई सालों से बसे है हम
आंखों में कई सपने लेकर अकेले ही डटे है हम
ये है बिहार की एक व्यथा जो हर घर की कहानी है
ना सबके हिस्से में रोटी है ना किसी के पानी है ।
हमसे पूछो दर्द हम कैसे अकेले जीते है
हमने काटी दूसरे शहर में सारी अपनी जवानी है
सुना था और पढ़ा भी था बिहार की कई कहानियां
यहा की बेरोजगारी भी और माफियों की मनमानियां
हम तो सदियों से बिहार से थोड़े दूर जो है
इसमें कही न कही प्रदेश की भी कसूर तो है ।
आर्यभट , बुद्ध और बिश्मिल्लाह खा की नगरी है
इसलिए भी हमें थोड़ी तो गर्व सी है ।
ये कोई बुराई नही या बिहार का अपमान नही है
ऐसा भी नही है कि अब इसका सम्मान नही है
ये सिर्फ़ एक पीड़ा है जो कागज़ पर उतर आई है
भले ही ख़ुद को अच्छा कहे पर यही अब सच्चाई है ।
है दूर जो अपने परिवार से सिर्फ़ दो रोटी के लिए
लिखते लिखते अब मेरी तो आंखे भी भर आयी है
मग़र ये सच्चाई है , मगर ये सच्चाई है
है बिहार की एक व्यथा जो लबों पर ऊतर आई है ।
हमने खाये कितने धक्के अपने सपनों के लिए
हमने सहे कितने दर्द सिर्फ़ अपनो के लिए
है हमारी मजबूरियां जो हम दूर ही रहते है
कोई पूछ लें अगर हमसे दबे आवाज़ में बिहारी कहते है ।
हा वेश भूषा ऐसा ही है , हमें गवार समझते है वो
देख देख हमें हँसे फिर देशी कहते है वो
फर्क़ नही पड़ता अब क्योंकि सपने हम संजोते है
अपनों से दूर होकर दिन रात हम जो रोते है ।
ये सिर्फ़ कहानी नही जो पन्नों पर ऊतर आई है
अपने बिहार की अब सिर्फ़ यही सच्चाई है
सिर्फ़ यही सच्चाई है , सिर्फ़ यही सच्चाई है ।
ये कोई बुराई नही , ना कोई अपमान है
जैसा भी है हमारा बिहार दिल से सम्मान है ।
-हसीब अनवर