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18 Mar 2020 · 1 min read

हम पुकारते कैसे

बीच रुसवाइयों के दिन गुजारते कैसे
काट ली तुमने जुबाँ हम पुकारते कैसे

लोग नजरें टिकाए बैठ जो गए हम पर
चाँद सा मुखड़ा तेरा फिर निहारते कैसे

हर जगह छोड़कर के तू गई पैरों के निशाँ
घर के आँगन को भला हम बुहारते कैसे

दिल में बैठे हो मेरे..सामने किसी बुत के
आरती थाल में लेकर उतारते कैसे

घोसला देख के यादों में चला आया घर
आशियाँ था वो किसी का उजाड़ते कैसे

छा गया आपकी आँखों का नशा जब ‘संजय’
आइना देख के खुद को स़ँवारते कैसे

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