हम पुकारते कैसे
बीच रुसवाइयों के दिन गुजारते कैसे
काट ली तुमने जुबाँ हम पुकारते कैसे
लोग नजरें टिकाए बैठ जो गए हम पर
चाँद सा मुखड़ा तेरा फिर निहारते कैसे
हर जगह छोड़कर के तू गई पैरों के निशाँ
घर के आँगन को भला हम बुहारते कैसे
दिल में बैठे हो मेरे..सामने किसी बुत के
आरती थाल में लेकर उतारते कैसे
घोसला देख के यादों में चला आया घर
आशियाँ था वो किसी का उजाड़ते कैसे
छा गया आपकी आँखों का नशा जब ‘संजय’
आइना देख के खुद को स़ँवारते कैसे