” हम पर हैं उपकार बड़े ” !!
पृथ्वी , धरा , भू , धरती के ,
हम पर हैं उपकार बड़े !!
जननी सा लालन पालन है ,
भूख प्यास सब दूर करे !
धूप घनेरी सही न जाये ,
वृक्षों की छाया उतरे !
अपना सब कुछ सौंपा हमको ,
हम नालायक हैं तगड़े !!
खनन किया है हमने ऐसा ,
पर्वत , सागर , नदिया का !
गहरे , गहरे इतने उतरे ,
धरा रह गई भौचक्का !
कानन कानन चले काटते ,
हरियाली पर प्रश्न खड़े !!
पृथ्वी बनी आग का गोला ,
मौसम कहाँ नियंत्रित है !
दावानल हैं , ज्वालामुख हैं ,
तूफाँ उठे असीमित हैं !
अपना सारा किया धरा है ,
हमीं धरा से हैं उखड़े !!
चलो आज दायित्व निभायें ,
पौधों का रोपण करना !
अपनी श्वासें करें नियंत्रित ,
वरना तिल तिल कर मरना !
हरा भरा आँचल हो माँ का ,
भाव भरे मोती ये जड़ें !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )