*हम पर अत्याचार क्यों?*
खाने से ईर्ष्या, पाने से ईर्ष्या।
छूने से ईर्ष्या, पीने से ईर्ष्या।
मूछों से ईर्ष्या, पूछो तो ईर्ष्या।
घोड़ी से ईर्ष्या, जोड़ी से ईर्ष्या।
विरोध से ईर्ष्या, मोद से ईर्ष्या।
सच्चाई से ईर्ष्या, सफाई से ईर्ष्या।
बारात से ईर्ष्या, परछाई से ईर्ष्या।
विचार से ईर्ष्या, अच्छाई से ईर्ष्या।
ईर्ष्या ईर्ष्या हम से ईर्ष्या द्वेष का विचार क्यों।
हम पर अत्याचार की क्यों?।।१।।
मूत्र पीलो तुम खुशी से, गोबर प्यार से खा लेते।
गोदी में ले लेते जानवर, कुत्ते से मुंह चटवा लेते।
घोड़ी से क्या रिश्ता खास है,चढ़े बारात तो इतराते।
गाय कुत्ता बिल्ली की मौत पर, क्यों इतना चिल्लाते हो?
मुंह पर ताला क्यों लग जाता, जब हिंदू हमें बताते हो?
अत्याचार बलात्कार हत्या और कितने जुर्म की गिनाऊं मैं।
रोहित वेमुला जितेंद्र मेघवाल फूलन देवी इन्द्र मेघवाल,
प्रवीण कुमार मनीषा वाल्मीकि और कितने नाम गिनाऊं मैं।
जाति है कि जाती नहीं किसी जाति पर वार क्यों?
हम पर अत्याचार क्यों?।।२।।
मटका छुआ मारा तुमने, ऐसा दुर्व्यवहार किया।
तरीका बदला सोच वही है, हर बार अत्याचार किया।
कटवाते पहले द्रोणाचार्य अंगूठा, आज जिंदा मार दिया।
दलितों पर ही क्यों जुल्म ढहाते, कारण तो बतलाओ तुम।
दलित क्या इंसान नहीं होते, इतना तो बतलाओ तुम।
हो जाएगा तुमको दर्द का अनुभव, खुद के साथ ऐसा बीते।
अक्ल ठिकाने हो जाए तुम्हारी, घर अपने सुनों तुम चीखें।
ऐसी घटनाओं पर विधायक हमारे, सांसद मंत्री मौन हैं।
रिजर्वेशन से मिल गई सीटें,बहरे गूंगों सा व्यवहार यूं।
हम पर अत्याचार क्यों?।।३।।
सौ में से पिचासी हैं हम, ना सोता शेर जगाओ तुम।
बिरसा मुण्डा वीर शिवाजी, एकलव्य से धनुर्धारी हम।
कोरेगांव हम भूले नहीं अभी, इतिहास हमारा तुम जानो।
सम्राट अशोक के हम वंशज हैं, भीमराव के चेले हैं।
खतरों से ना हमें डराओ, हम खतरों से खेले हैं।
नामदेव तुकाराम कबीर रविदास, गौतम से सन्यासी हम।
सावित्री रमा व झलकारी ज्ञान करूणा युद्ध में भारी हम।
साहूजी फूले ललई पेरियार, काशीराम से संघर्षी।
याद नहीं मातादीन भंगी वीर उधम सिंह, डायर सा व्यवहार क्यों?
हम पर अत्याचार क्यों?।।४।।
जानते हैं पत्थर से जवाब देना, फिर भी शान्ति से समझाते हैं।
संविधान पर चलते हैं हम, इसलिए तुम्हें बताते हैं।
टकराव से ना मिलेगा कुछ भी, नुकसान हमारा सबका है।
सोच बदलो बचा लो देश, सम्मान हमारा सबका है।
ओछी तुच्छ मानसिकता छोड़ो, धर्म जात को दो धिक्कार।
कोई किसी से कम नहीं है, पढ़े-लिखे बनो सोचो सार।
इन बातों में कुछ नहीं रखा, सोचो समझो करो विचार।
समझाने को लिखी है यह कृति, दुष्यन्त कुमार का पढ़ लो सार।
न्यायपालिका पर समान अधिकार हो, झूठा मीडिया का प्रचार क्यों?
हम पर अत्याचार क्यों?।।५।।