हम पंक्षी एक डाल के
आये थे हम पंछी बन कर।
आशियाना हमें मिला यहाँ।।
ज़मीन की गोद में रह कर।
आसमान हमें दिखा यहाँ।।
ऊँचाई को भी छू जाने का।
जुनून हम में खिला यहाँ।।
पंख निकले और बड़े हुये।
उड़ान भी हम ने भरा यहाँ।।
आये थें जो अकेले ही हम।
कारवाँ भी हमारा बना यहाँ।।
वक़्त ने जो करवट लिया।
तो हो गये हम जुदा यहाँ।।
दिल से दिल मिले थे अपने।
पल दो पल भी न थमा यहाँ।।
पीछे मुड़ कर जो देखा तो।
कारवाँ पाया फिर नया यहाँ।।
खिल उठा फिर आशियाना।
जो पंछी नया है आया यहाँ।।
कारवाँ हो नया या हो पुराना।
सफ़र किसी का न रुका यहाँ।।
ज़िंदगी रही तो मिलेंगे ज़रूर।
जब रब ने बनाया गोल धरा यहाँ।।