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7 Aug 2020 · 1 min read

हम दीपक हम ही उजियारे

जल उठते खुद सांझ सकारे ,
हम दीपक हम ही उजियारे !

चले अकेले हैं बचपन से
डरे कभी न पथ निर्जन से
अपना सीना तान निरन्तर
बढ़ते जैसे मेघ पवन से

घनी अमावस की रातों में
खेले जैसे टिमटिम तारे
हम दीपक हम ही उजियारे !

अपना बोझा स्वयं उठाया
नहीं किसी ने हाथ लगाया
काम आ गए दूजो के पर
अपने काम न कोई आया

कंटकमय गलियारे हमने
अपने हाथों खूब बुहारे
हम दीपक हम ही उजियारे !

मिला प्रेम से मित्र बनाया
जीवन गीत मधुर स्वर गाया
मन में भाव कपट का देखा
तो हृदय का द्वार लगाया

सुख दुख के मंजर जीवन में
हमने सौ सौ बार निहारे
हम दीपक हम ही उजियारे !

अपनों ने उत्साह बढ़ाया
रही बड़ों की सर पर छाया
अपने हित को पीछे रखकर
परहित का ही धर्म निभाया

ईश्वर पर विश्वास रखा तो
लगी प्रेम से नाव किनारे
हम दीपक हम ही उजियारे !

Language: Hindi
1 Comment · 468 Views
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