” हम तो हारे बैठे हैं “
गीत
तुमने हँस कर बाजी जीती ,
हम तो हारे बैठे है .
सपने भी अपने कब ठहरे ,
नाम तुम्हारे ऐंठे हैं .
उड़ी नींद आँखों की ऐसी ,
हुआ जागरण रातों का .
दिल भी अपना गया हाथ से ,
जादू मीठी बातों का .
मूक निमंत्रण सदा तुम्हारा ,
मुझको रास न आया है .
भय में प्रीत कहाँ भाती है ,
फिर भी मन भरमाया है
नयनों ने की खूब शरारत ,
भूल गये हम मधुशाला .
प्यासे प्यासे अधर चाहते ,
अब हाला का वह प्याला .
अलि ने चाहा है पराग तो ,
खूब लगाये फेरे हैं .
धूप छाँह क्या छला गया पर ,
सदा गीत ही टेरे हैं .
सुमन सदा हैं रहे विहँसते ,
और गंध है बौराई .
सदियों से यह प्रीत पुरातन ,
काँटों में पलती आई .
साहस करके हाथ बढाया ,
हमें ध्येय जो पाना है .
भाव तुम्हारे पावन हैं तो ,
दुनिया से टकराना है .
कदम मिलाकर साथ चलेगें ,
जो होगा देखा जाये .
राह नहीं यह सुगम जान लो ,
यहाँ सफलता तरसाये .
स्वरचित /रचियता –
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )