*हम तो हम भी ना बन सके*
हम तो हम भी ना बन सके
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उन जैसा मै कैसे बनूँ,
हम तो हम भी ना बन सके।
उन के पीछे चलते रहे,
खुद की राहें ना चल सके।
यूँ मन की मन में ही रही,
मन से मन की ना कर सके।
गम प्यालों में भर पी रहे,
यारों खुल कर ना हँस सके।
खोई – खोई सी है जिंदगी,
जीवन के दुख ना हर सके।
जीवन कोरा कागज रहा,
कोई गाथा ना लिख सके।
ताउम्र उन पर मरते रहे,
ना ही जी ना ही मर सके।
वो काँटा बन चुभते रहे,
फूलों सा ना वो खिल सके।
मधु बूँदे बरसी पास में,
पंछी बन ना घूँट भर सके।
मनसीरत बन चातक रहा,
धोखे से ना हम छल सके।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)