हम–तुम एक नदी के दो तट हो गए– गीत
हम–तुम एक नदी के दो तट हो गए,
चाहकर एक दूजे से मिल ना सके।।
एक अधूरा सा जीवन लिए साथ में,
एक दूरी तलक साथ चलते रहे।
दूरियां फिर मगर ऐसे बढ़ती गईं,
मिलके बिछड़े, मगर फिर से मिल ना सके।
हम–तुम एक नदी के दो तट हो गए, चाहकर एक दूजे से मिल ना सके।।
हर सरल राह चुनकर, तुम्हें सौंपकर,
नाम अपने कठिन राह करते रहे।
तुम सरल राह पाकर के आगे बढ़ी,
हम कठिन राह पर, ज्यादा चल ना सके।
हम तुम एक नदी के दो तट हो गए, चाहकर एक दूजे से मिल ना सके।।
हारना तो हमारा चयन था मगर,
जीत जाना तुम्हारा रहा लक्ष्य है,
हम तुम्हारे चयन को ही जीते रहे,
लक्ष्य अपना तुम्हे यूं बता न सके।
हम समर्पण का जीवन लिए साथ में,
उस किनारे तलक दूर चल न सके।।
हम तुम एक नदी के दो तट हो गए, चाहकर एक दूजे से मिल ना सके।।
भाग्य मेरा नदी सा था सीमित मगर,
हर समुंदर तुम्हारे लिए सोचता,
स्वप्न की चाह में और तुम्हे सोचकर,
जो ख़सारा हुआ उसको सह न सके।
हारना प्रेम में यूं सफलता ही है,
पर विरह जो मिला उसको सह न सके।।
हम तुम एक नदी के दो तट हो गए,
चाहकर एक दूजे से मिल न सके।।
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
ललितपर, उत्तर–प्रदेश