हम तुम्हे पूजते ही रहेंगेI
हम तुम्हे पूजते ही रहेंगेI
भक्ति की भावना को गहेंगेI
विश्व में चोर मक्कार तो क्या?
गंग के नीर सा हम बहेंगेI
तन्त्र कोई रहे शासकों का,
विश्वसत्ता तुम्हारी कहेंगेI
सत्य को जान के सन्त बोलो,
झूठ का वार कैसे सहेंगेI
मानते जो बधिर ‘आशु’ तू है
वो किले शीघ्र सारे ढहेंगेII
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ