हम ढूंढ़ लेंगे
हम ढूंढ़ लेंगे
अपने कांपते हाथों से
अंधेरे में भी रौशनी का कतरा,
शर्त ये है हमारी आंखों से हाथ तो हटाओ…
हम आवाज दे लेंगे
अपने लरजते होठों से
अपनी हक की बात
शर्त ये है तुम हमरे होठों से हाथ तो हटाओ
हम गिरते गिरते, खुद को घसीटते हुए
ले तो जाएंगे अपनी मंजिल तक
शर्त ये है, हमारी जंजीरें तो खोलो
हम अपनी रातों में सपने भर तो लेंगे
शर्त ये है हमारी रातों पे जो पहरे लगाए हैं
उसे तो हटाओ, हमें अंधेरे में मचलने तो दो
हम चांद नहीं मांगते तुम से
तुम है जाओ उसे अपना आंगन बनाओ
हम जग्नुओं को न्योत लाएंगे
उन्हें पहरे पे अंधेरे का पहरेदार बना बिठाएंगे
जगनुओं से ही काम चला लेंगे
शर्त ये है जूगनुओं को हमारे हक में गुनगुनाने तो दो
~ सिद्धार्थ