हम जिसको चाहते थे पा लेते उस खुशी को।
गज़ल
221…….2122…….221…….2122
हम जिसको चाहते थे पा लेते उस खुशी को।
करते थे प्यार जिसको दिल देते उस हँसी को।
हर वक्त साथ होती नाज़ो अदा की मलिका,
ज्यों चाँद साथ रखता नित अपनी चाँदनी को।
दुनियाँ की रौनकों में उलझे वो इस तरह से,
भूले हैं वो खुदा को औ’र भूले बंदगी को।
वो छोड़कर जमीं को अब चाँद पर रहेंगे,
कैसे जियेंगे भूले मुफ़लिस औ मुफ़लिसी को।
है जिंदगी तुम्हारी कहते इसे हमारी,
समझूंगा मैं भी अपनी अब तेरी जिंदगी को।
चेहरे पे चेहरे देखे जो रंग हैं बदलते,
पहचानना है मुश्किल अब आज आदमी को।
जो चाँद ही समझता था खुद को एक प्रेमी,
बेचैनियों में तरसा तारात चाँदनी को।
……✍️ प्रेमी