हम गंगा को प्रदूषित होने से कैसे बचाएं ?
बेशक भारत प्रगति की ओर तीव्रतम गति से अग्रसर हो रहा है परंतु इसके लिए वह क्या क्या कीमत चुका रहा है इसका अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल है। पर्यावरण को दांव पर लगाकर हम अपने सुनहरे भविष्य के सपने संजो रहे है । इसका परिणाम भावी पीढ़ी किस रूप में भूगतेगी इसका दृश्य हम अभी की पर्यावरणीय प्रदूषणों की बढ़ती घटनाओं से देखा जा सकता है। कुछ इसी तरह की परिस्थितियों से तरणतारिणि माँ गंगा भी जूझ रही । मेरी कविता माँ गंगा की इस दुर्दशा को दर्शाते हुए लिखी गई है तथा गंगा को प्रदूषण मुक्त कैसे किया जाय इसका भी सुझाव व्यक्त किया गया है…आशा है आप सभी को पसंद आएगा ।
माँ गंगा प्रदूषणमुक्त कैसे हो ?
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं , माँ गंगे तुम्हारी ।
थी जिनकी तुम तरणी,है लूटी उसी ने अस्मिता तुम्हारी ।।
शांत-सी मुस्काती-मचलती, मदमस्त सी बस बहती ही जाती।
हिलोरें लेती मदमाती,कभी शांत तो कभी उफनती ।।
सोलह श्रृंगार में एक नवयुवती,प्रकृति सौंदर्य लिए अपना बाबुल छोड़ बचाकर रखन
सबके प्रेम वेग में बस इठलाती,अपने पिया सागर में जा मिली ।।
तरण-तारिणी तुम जन के तन-मन धोती,हो सर्वसुखकरनी दुःखहरनी ।
भारत का वरदान हिमालय तो,हो तुम पापनाशक मोक्षदायिनी हिमगिरी की जटाशंकरी ।।
पर आज……तुझे यूँ बदहवास देख,मन मेरा कुछ रुंहासा सा हुआ ।
कैसे तेरी नागिन जैसी चाल को,बांधों ने है फांसा हुआ ।।
तुझसे ही पवित्र होता रहा,आज तेरा ही आँचल मैला कर किया ।
हाय ! कैसा पथिक हूँ मैं अपना प्यास बुझा,तुझको ही गंदा किया ।।
हे मानुष! तेरी करनी पर,लाचार असहाय है गंगा ।
हैरान परेशान मजबूर,अपनी से हैसियत बहुत दूर है गंगा ।।
दौड़ा रहा तू नहर बना इसे खेत में,मछली सी यह तड़प रही ।
नाले सता रहे लाश-राख-हांडी सब बहा रहे,सिर पटक यह रो रही ।।
आज जो है हालात इसकी तुझे मालूम नहीं,इसमें है किसका हाथ ।
ले संकल्प उठा बीड़ा इसके अब तारण का,न कर अत्याचार अब इसके साथ ।।
यूँ कब तक बहेगी यह ,तेरे पापों का मैल ढ़ोते-ढ़ोते ।
दर्द से बेहाल कराह रही,तेरी दी हुई यातनाओं को सहते- सहते ।।
गंगाजल पुनः निर्मल अमृत जल बन जायेगा,जागरूक हो मानव जब न गंदा फैलायेगा ।
न प्लास्टिक का प्रयोग न लाशों को बहायेगा,मुर्दाघाट जब अलग बनाएगा ।।
डुबकी-विसर्जन प्रथा, धार्मिक अनुष्ठानों को रोकना बेशक है एक मुश्किल काम, क्योंकि गंगा है एक आस्था का नाम ।
किनारों पर शौचालय सिवरेज की व्यवस्था-अपशिष्टों का निपटान,उद्योगों से दूर हो सारे गंगा धाम ।।
बैराजों में पानी हो कम,बड़े बांधो की जगह हो माइक्रोडैम ।
ऑर्गेनिक खेती को मिलें बढ़ावा,रासायनिक कृषि अपशिष्ट की मात्रा हो कम ।।
कूड़े करकट की हो जैविक तरीके से सफ़ाई,गुरुत्वाकर्षण के सहारे हो यह सारे कुंड में जमा ।
गंदे नालों से दूर हो पतित-पाविनी,प्रदूषण-जीवाणु-विषाणु-
फफूंद-परजीवी न हो इस पर जमा ।।
तुझ से ही काशी-हरिद्वार और प्रयाग है, हर-हर गंगे कह बनेंगे सब रक्षा कवच तेरी ।
क्योंकि…कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं , माँ गंगे तुम्हारी ।।
✍️ करिश्मा शाह
नेहरू विहार, नई दिल्ली
मेल- karishmashah803@gmail.com