हम कवि न जाने क्यो ये
हम कवि ना जाने क्यों ये काम कर देते है
आम के आम गुठलियों के दाम कर देते हैं
पीते एक घूँट नहीं है हलक से अपनी पर
महफ़िलों में लब सुर्ख ए जाम कर देते है
जब भी लगती है तन्हाइयों की महफिलें
तन्हा रहकर भी हंसी ये शाम कर देते है
जो जानते नहीं नाम हमारा उनसे पुछो
कैसे कवि ये खुद को बदनाम कर देते है
बस जब बात आती है राष्ट्र भक्ति की
गर्दन रख ख़ंजर,अपना नाम कर देते है
कोई पूछता जब अशोक की दर्द जानो
शीश अपना कटवाने का पैगाम कर देते है
अशोक सपड़ा हमदर्द