#ग़ज़ल-13
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पीर पराई समझे अपनी एक हमारी कथनी करनी
मरहम बन जाएँ ज़ख्मों के दीवाने हैं हम और नहीं/1
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हाथ मिलाके चलते जाएँ मोहब्बत में ढ़लते जाएँ
ये जान लुटादें शम्मा पर परवाने हैं हम और नहीं/2
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लाभ उठाया छोड़ दिया फिर मिलके जोड़ी हँसके न नज़र
गैर सही पर चितचोर नहीं मस्ताने हैं हम और नहीं/3
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चंदन सुगंध-भी बन जाते विषधर दुश्मन को लज्जाते
नतमस्तक करते प्रेम दिखा नज़राने हैं हम और नहीं/4
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प्रतिपल मीत हमारे बनते सबका दिल जीत सदा चलते
गीत हमारे गाए जाते अफ़साने हैं हम और नहीं/5
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जीवन ग़म हार मिटाते हैं भेद भुला प्यार लुटाते हैं
मस्ती भर देते तन-मन में मयखाने हैं हम और नहीं/6
–आर.एस.प्रीतम
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