हम अनवरत चल रहे है
कोशिशे जारी रहेगी
हम अनवरत चल रहे है
कोई ठोकर कोई बाधा
आ नही सकती रुकावट
दीप बनकर जल रहे है
हम अनवरत चल रहे हैं ।
कौन कहता है असम्भव
चीज होती है धरा पर
कल जो था वह आज न है
सब यहाँ बदल रहे है
हम अनवरत चल रहे है ।
पत्थरो को सीख मिलती
हम ही केवल सक्त न है
दो हथेली बीच लाकर
चूने सा मसल रहे है
हम अनवरत चल रहे है ।
कर्म ही कर्तव्य मेरा
कर्म की कोशिश रही हैं
न मिला धन मान तो क्या
सिकन न कोई बल रहे है
हम अनवरत चल रहे है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र
प्रवक्ता सरयूइंद्रा महाविद्यालय संग्रामगढ प्रतापगढ
9198989831