*हमे अब भी गुजरा जमाना याद है*
हमे अब भी गुजरा जमाना याद है
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हमें अब भी गुजरा जमाना याद है,
हसीं पल से शोभित फ़साना याद है।
मिलूँ कैसे तुम से कहाँ सूना जहां,
बनाया झूठा वो बहाना याद है।
कभी भी देखूँ मुंह फुलाये हो खड़ी,
हँसा करके रूठी को मनाना याद है।
न गुजरे कोई पल भी तुम्हारे बिना,
बहुत ही प्यारा सा निशाना याद है।
कसम से कोई भी न देखा आपसा,
शिद्द्त से वादों को निभाना याद है।
कभी चोरी तो कभी आकर सामने,
नजर से नजरों को मिलाना याद है।
झुकी ऑंखे दास्तां बता देती हमें,
निगाहों से झट-पट पढ़ाना याद है।
चले आओ अब भी खड़े है दरमियां,
तड़फ में यूँ ही आँसू बहाना याद है।
हवा का झोंका है प्यार ये मनसीरत,
गर्व से सिर को भी झुकाना याद है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)