“हमें अन्नदान देती हो”
हे धरती मां! तेरी ह्रदय कितना विशाल है?
हम अनगिनत चोट पहुंचाते हैं,
पर कुछ नहीं कहती हो,
हम कुछ भी डाल देते है गर्भगृह में,
अपने रख लेती हो।
हमें अन्नदान देती हो।
पर्वत तोड़ समतल कर देते हैं,
वन्य जीव का विनाश करते हैं,
नदियां, तालाब,पाट सम कर देते हैं,
पर तुम, हमें क्षमा दान देती हो।
हमें अन्नदान देती हो।
मानव,पेड़-पौधे,जीव-जंतु,
सब तेरी ही कृपा पात्र हैं ,
मरूस्थल में भी हरियाली का,
तुम वरदान देती हो।
हमें अन्नदान देती हो।
सारे कर्म तुझ पर करते हैं,
पुण्य-पाप के भागी बनते हैं,
तेरी अनादर बारंबार करते हैं,
फिर भी हमें जीवनदान देती हो।
हमें अन्नदान देती हो।।
राकेश चौरसिया