हमें बिहार कहते हैं।
हमें गणतंत्र राज के जनक,
और नालंदा के ज्ञान का विस्तार कहते हैं।
हमें शून्य की खोज,
सिख बौद्ध धर्म का सृजनहार कहते हैं।
हाँ हमें बिहार कहते हैं।
हम एक तरफ हर साल डुबते हैं,
और एक तरफ हर साल सूखते हैं,
फिर भी बिना सहारे के खड़े होने का मिशाल कहते हैं,
हाँ हमें बिहार कहते हैं।
हम लोहा से लेकर सोना काटते हैं,
हम दोस्ती हर एक से बांटते हैं,
फिर भी वो बिहारी का तिरस्कार कहते हैं।
हाँ हमें बिहार कहते हैं।
हमे बाबू कुँवर सिंह का हिम्मते अहसास कहते हैं,
भिखारी ठाकुर के गीत का छाप कहते हैं,
बहुभाषी और सामाजिक सरोकार कहते हैं,
हाँ हमें बिहार कहते हैं।।।।।