आजादी की आशा
आजादी की आशा दिल में थी
लेकिन भय की निराशा होठों पर थी
दब गई वह आशा इस निराशा से
कुछ दिल जाग उठे ,अपनी शवासा से
जब एक नजर उन्होंने उठाई
तो थम गई वह आवाज
समझ गई दुनिया उस आवाज की कमजोरी का राज
जाग उठे ,सोच पड़े वह शेर हमारे
पाने मुक्ति इस बंधन से अपनी ताकत के सहारे
दूर नहीं वह दिन जब हम ने यह कहकर ललकारा था
15 अगस्त 1947 को सबके मन में जीत का जयकारा था