हमारे बुजुर्ग
जब बुढापे में पड़े है झाइयाँ
डर लगे है देख कर परछाइयों
बाल बच्चे जब न कहना मानते
बाप माँ की फट पड़े तब छातियाँ
आज सोशल मीडिया उनका खुदा
फिर न करता कोन है सुनवाइयाँ
घर निकाले क्यों गये ये वृद्ध जन
नव वधूए हो गई पटरानियाँ
खो गई शालीनता औ सभ्यता
इसलिए मन में बनी गहराइयाँ
लड़कियों को मूल्य संस्कार दे
तब बजाये आप ये शहनाइयाँ
पौध जैसा कर बड़ा जीवन दिया
दे रहे क्यों रोज हम तन्हाइयाँ