हमारी हिंदी
जननी जन्म भूमिश्च ,
स्वर्गादपि गरीयसी।
संस्कृति संस्कृत से बना,
हिंदी है देश की प्रेयसी।
हिंदी गौरव हमारी है,
है जान भारत महान की।
बाग अनेकों पुष्प हैं महके,
हिंदी हार हिंदुस्तान की।
पूरब से पश्चिम तक फैली,
मृदु भाषा की माता है।
तभी विश्व अपनाकर इसको,
तीसरे क्रम पर लाता है।
जन्म पाकर धन्य हुए हैं,
माता भारत की धरती पे।
मुँह से पहले माँ निकला,
वो भी हिंदी की जरती से।
समृद्ध अपनी मातृभाषा,
भाव बड़ा निराला है।
फिर क्यों आंग्ल भाषा का,
बड़ रहा बड़ बोला है।
पन्त निराला प्रेम जी की,
सुर में हिंदी का ताल है।
राजभाषा में सब होता है,
राष्ट्रभाषा को क्यूँ मोहाल है।
दक्षिण के लोगों बतला दो,
हिंदी से क्यों होता खेद?
अंग्रेजी क्या सगी तुम्हारी,
समझ नहीं आता यह भेद।
सरकारी दफ्तर में देखो,
मातृभाषा का ये है हाल।
क्यों बन गयी मैं मात्रभाषा,
हिंदी पूछे आज सवाल।
आओ मनाये हिंदी दिवस,
फ़ोटो सेल्फी खूब खिचाएँ।
हिंदी से अपनी आन मान है,
उसको ही पहचान बनाएं।
न भटके गलियारे में हिंदी,
अंग्रेजी संस्कृति कम अपनाएं।
पहना पूर्ण लिवास इसको,
अर्द्ध वस्त्र में नहीं घुमाएँ।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र
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